दर्द मुक्ति की इस पोस्ट में हम गलसुआ बीमारी का कारण, लक्षण, बचाव के तरीके के बारे में जानेंगे. गलसुआ (Mumps) एक ऐसी बीमारी हैं, जिसमे संक्रमित व्यक्ति को गालो और गर्दन में दर्द की शिकायत रहती है. जब कोई व्यक्ति इस बीमारी से संक्रमित होता हैं, तब उस इंसान का चेहरा बहुत ही भद्दा दिखाई देता हैं. वह व्यक्ति न तो खुलकर हंस पाता हैं और उसे भोजन करने में भी तकलीफ का सामना करना पड़ता है. यह बीमारी उम्र को नही देखती, किसी भी उम्र का व्यक्ति इसकी चपेट में आ सकता हैं. चलिए पोस्ट के अगले भाग में गलसुआ बीमारी के होने के कारण को जानते हैं.
गलसुआ बीमारी होने का कारण – Galsua Bimari Ka Karan In Hindi
कनफेड या गलसुआ जिसे अंग्रीजी भाषा में मम्प्स कहते हैं, एक विषाणुजनित बीमारी है. यह पैरोटिड ग्रंथि में संक्रमण के कारण होता हैं. बहुत से लोगो को गलसुआ बीमारी और टांसिल के बीच में क्या डिफरेंस होता हैं, यह नही पता होता हैं. गलसुआ एक संक्रामक बीमारी है, जो एक इंसान से दुसरे इंसान में आसानी से फैलती है. यह बीमारी छिकने, खासने और संक्रमित मरीज के साथ एक बर्तन में खाना खाने से फ़ैल सकती है. इस बीमारी में पैरोटिड ग्रंथि में सूजन आ जाती हैं. यह ग्रंथि कान के निचले हिस्से तक होती हैं और मुंह में लार और थूक का निर्माण करती है. गलसुआ बीमारी बचपन और युवावस्था में अधिक होती हैं, लेकिन इसके होने की कोई उम्र नही हैं. गलसुआ बीमारी का कारण जानने के बाद अब अगले भाग में हम इस बीमारी के लक्षण जान लेते हैं.
गलसुआ बीमारी के लक्षण – Galsua Bimari Ke Lakshan
इस बीमारी के लक्षण शुरुआत में नही दिखाई देते हैं, जब संक्रमण पूरी तरह फ़ैल जाता जाता हैं, तब ही इस बीमारी के लक्षण सामने आते हैं. इसके लक्षण वायरस के संपर्क में आने के लगभग 15 से 20 दिन के बाद दिखाई देते हैं.
- इसका एक मुख्य लक्षण बुखार है, जब गलसुआ की शुरुआत होती है तब फीवर आ जाता हैं.
- जब गलसुआ होता है, तब सर में दर्द और भूख न लगने जैसी समस्याए सामने आती हैं.
- इस बीमारी के समय खाने को चबाने और निगलने में अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता हैं.
- मुंह को खोलने वाली ग्रंथि में भी अधिक दर्द का सामना करना पड़ता हैं.
- इस रोग में गाल के साथ-साथ कान के निचले हिस्से तक सूजन आ जाती है. कान के पीछे की ग्रंथि में सूजन के आने से मुंह को खोलने में दिक्कत आती हैं
- जब गलसुआ बीमारी होती है, तब पुरुषो की प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता हैं. इसके कारण अंडकोष में दर्द का सामना भी करना पड़ता हैं.
- दिमाग और स्तन में सूजन जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं, इस तरह की परेशानी बहुत कम मरीजो में होने की सम्भावना होती हैं.
गलसुआ और टांसिल में क्या अंतर हैं?
बहुत से लोगो को टांसिल और गलसुआ में क्या अन्तर होता हैं यह नही पता होता हैं. गलसुआ विषाणु संक्रमण के जरिये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाला रोग हैं. कई बार डॉक्टर भी गलसुआ और टांसिल की पहचान करने में गलती कर जाते हैं. गलसुआ बीमारी की पहचान खून की जाँच करने पर पता चलती हैं. खून में एंटीबॉडी की उपस्तिथि से वायरल संक्रमण का पता चल जाता हैं.
Galsua Bimari होने पर क्या करना चाहिये? – उपाय
यदि देखा जाये तो गलसुआ बीमारी के लिए कोई विशेष इलाज नही हैं, क्योंकि यह संक्रमण दस से पंद्रह दिन के अंदर खुद ही ठीक हो जाता हैं. इस रोग में दर्द को कम करने के लिए डॉक्टर द्वारा दर्द निवारक दवाइयां दी जाती हैं. गलसुआ रोग होने पर इन बातों का ध्यान रखना चाहिये.
- खाने में तरल खाद्य पदार्थो का उपयोग करें.
- गलसुआ से पीड़ित मरीज को आराम करना चाहिये.
- मुंह की साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिये.
- मरीज को खट्टे पदार्थ और फलो को खाने से बचना चाहिये.
- इस रोग होने का करण वायरस हैं, इसलिए डॉक्टर अधिक मात्र में पानी पीने की सलाह देते हैं .
- गरम पानी से गरारे करने से इसमें लाभ मिलता हैं.
- बच्चो को इस रोग से बचाने के लिए एमएमआर नामक टीका लगता हैं. पंद्रह माह तक के बच्चे को यह टीका लगाया जाता हैं.
पाठकगण दर्द मुक्ति की इस पोस्ट को पढ़कर आप समझ गए होंगे की गलसुआ बीमारी का कारण क्या हैं. इसके अलावा आपने इस बीमारी के लक्षण, गलसुआ और टांसिल में अंतर और गलसुआ (Mumps)होने पर क्या करना चाहिये इस बारे में पढ़ा. उम्मीद करते आपको जानकारी अच्छी लगी होगी. इस बीमारी के बारे में आप अपने परिवार के लोगो और मित्रो से भी शेयर कर सकते हो.